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What is Love? Definition, Signs, Gita’s Perspective and the Secret of True Love |
1. भूमिका – प्रेम क्यों सबसे बड़ा सवाल है?
जब भी हम “प्रेम” शब्द सुनते हैं, तो दिल में एक अजीब सी हलचल उठती है। कभी लगता है यह जीवन का सबसे मधुर अनुभव है, तो कभी यह सबसे गहरी उलझन भी बन जाता है। यही कारण है कि लोग बार-बार गूगल पर जाकर पूछते हैं — “प्रेम क्या है?”, “प्रेम क्यों होता है?”, “सच्चा प्यार कैसे पहचानें?”।
असल में प्रेम एक ऐसा अनुभव है जिसे हर इंसान जीना चाहता है, लेकिन सही शब्दों में परिभाषित करना किसी के लिए आसान नहीं। यह केवल दो व्यक्तियों के बीच का रिश्ता नहीं है, बल्कि आत्मा से आत्मा का संवाद है। जब प्रेम होता है तो इंसान का दृष्टिकोण बदल जाता है — सोच बदलती है, जीने का ढंग बदल जाता है।
लेकिन यहाँ एक सवाल भी उठता है — क्या प्रेम केवल आकर्षण और भावनाओं का खेल है? या फिर यह जीवन की गहराई को समझने का एक साधन है?
यही जानने की प्यास हमें आगे बढ़ाती है और प्रेम की परिभाषा, उसके कारण, उसके संकेत और उसकी सच्चाई को खोजने के लिए प्रेरित करती है।
इस लेख में हम प्रेम को केवल शब्दों से नहीं, बल्कि अनुभव और ज्ञान से समझेंगे — मनोविज्ञान से लेकर आध्यात्म तक, गीता के दृष्टिकोण से लेकर आधुनिक जीवन तक। और अंत में शायद यह एहसास भी होगा कि प्रेम को समझना मुश्किल नहीं, बल्कि उसे जीना ही सबसे बड़ी साधना है।
2. प्रेम की परिभाषा – What is Love in Hindi
“प्रेम” शब्द छोटा है, लेकिन इसका विस्तार पूरे ब्रह्मांड जितना है। अलग-अलग लोग इसे अपनी-अपनी तरह से परिभाषित करते हैं। किसी के लिए प्रेम का मतलब है साथ रहना, किसी के लिए त्याग करना, तो किसी के लिए बस मन की गहराइयों में महसूस होना।
यदि साधारण भाषा में कहें, तो प्रेम का अर्थ है — पूर्ण स्वीकार और गहरा अपनापन।
जब हम किसी व्यक्ति, किसी वस्तु, किसी विचार या यहां तक कि किसी ईश्वर से जुड़ते हैं और बिना शर्त उसे स्वीकार करते हैं, वहीं प्रेम जन्म लेता है।
Dictionary की परिभाषा:
प्रेम का मतलब है किसी के प्रति गहरी आत्मीयता, लगाव या आकर्षण।
आध्यात्मिक परिभाषा:
प्रेम आत्मा का स्वभाव है। आत्मा जब किसी दूसरे जीव या परमात्मा को अपने ही विस्तार की तरह अनुभव करती है, तब जो भाव उत्पन्न होता है उसे प्रेम कहते हैं।
“प्रेम क्या है एक शब्द में?”
अगर इसे सिर्फ एक शब्द में बाँधना हो तो सबसे उपयुक्त शब्द है – “समर्पण”।
समर्पण का मतलब है – सामने वाले को पूरी तरह स्वीकार करना, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो।
प्रेम को परिभाषित करना आसान नहीं, क्योंकि यह शब्दों से बड़ा और अनुभव से गहरा है। लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि प्रेम वह शक्ति है जो हमें “मैं” से “हम” की ओर ले जाती है।
3. प्रेम क्यों होता है?
यह सवाल हर दिल में उठता है – “आख़िर प्रेम क्यों होता है?”
क्या यह सिर्फ़ शरीर और दिमाग़ की रसायन-क्रियाओं का परिणाम है, या फिर इसके पीछे कोई गहरी आध्यात्मिक वजह भी है?
प्रेम को समझने के लिए हमें तीन दृष्टिकोणों से देखना होगा – जैविक (Biological), मनोवैज्ञानिक (Psychological) और आध्यात्मिक (Spiritual)।
1. जैविक कारण (Biological Reasons)
वैज्ञानिक दृष्टि से प्रेम इंसान की प्रजनन और जीवन रक्षा की प्रवृत्ति से जुड़ा हुआ है।
जब हमें किसी से लगाव होता है तो दिमाग़ में डोपामाइन, ऑक्सिटोसिन और सेरोटोनिन जैसे हार्मोन सक्रिय हो जाते हैं।
ये हार्मोन हमें खुशी, संतोष और अपनापन महसूस कराते हैं।
शरीर चाहता है कि यह सुखद अनुभूति बार-बार मिले, इसलिए हम उस व्यक्ति की ओर खिंचने लगते हैं।
2. मनोवैज्ञानिक कारण (Psychological Reasons)
हर इंसान के भीतर गहरे स्तर पर सुरक्षा, स्वीकार और जुड़ाव की आवश्यकता होती है।
प्रेम हमें यह एहसास दिलाता है कि हम अकेले नहीं हैं।
किसी के द्वारा चाहा जाना हमारी आत्मसम्मान (Self-esteem) को बढ़ाता है।
बचपन से ही हम अपने माता-पिता से प्रेम पाते हैं और यही पैटर्न हमें जीवनभर साथ की तलाश कराता है।
3. आध्यात्मिक कारण (Spiritual Reasons)
आध्यात्मिक दृष्टि से प्रेम केवल भावनाओं का खेल नहीं है।
यह आत्माओं का मिलन है।
अक्सर कहा जाता है कि प्रेम इसलिए होता है क्योंकि आत्मा अपने अधूरे हिस्से को पहचान लेती है।
हिंदू दर्शन के अनुसार, कई जन्मों का कर्म संबंध (Karmic Bond) भी प्रेम का कारण बनता है।
प्रेम हमें “स्व” से परे जाकर “दूसरे” को देखने और एकता का अनुभव करने का मौका देता है।
संक्षेप में कहा जाए तो —
प्रेम इसलिए होता है क्योंकि यह हमारी प्राकृतिक प्रवृत्ति है, हमारी मानसिक ज़रूरत है और हमारी आध्यात्मिक यात्रा का हिस्सा भी है।
4. पवित्र और निस्वार्थ प्रेम क्या है?
जब हम “प्रेम” शब्द सुनते हैं, तो उसके कई रूप सामने आते हैं। कोई इसे मोहब्बत समझ लेता है, कोई आकर्षण, तो कोई इसे सिर्फ़ रिश्तों तक सीमित कर देता है। लेकिन असली सवाल है — पवित्र प्रेम क्या है और निस्वार्थ प्रेम किसे कहते हैं?
पवित्र प्रेम (Sacred Love)
पवित्र प्रेम वह है जो किसी भी तरह की वासना, स्वार्थ या शर्तों से परे होता है।
इसमें “मैं” और “मेरा” का भाव नहीं होता।
यह प्रेम शरीर तक सीमित नहीं, बल्कि आत्मा से जुड़ा होता है।
उदाहरण: भक्त और भगवान का संबंध। जब मीरा ने कृष्ण को प्रेम किया, तो उसमें किसी प्रकार का स्वार्थ नहीं था। वह प्रेम पवित्र था क्योंकि वह केवल समर्पण और भक्ति पर आधारित था।
पवित्र प्रेम का अर्थ है – ऐसा प्रेम जिसमें किसी प्रकार की मिलावट न हो।
निस्वार्थ प्रेम (Selfless Love)
निस्वार्थ प्रेम का मतलब है बिना किसी अपेक्षा के प्रेम करना।
इसमें “तुम मेरे लिए क्या करोगे?” जैसी सोच नहीं होती।
यह प्रेम बस देने की भावना से भरा होता है।
उदाहरण: माता-पिता का अपने बच्चों के लिए प्रेम। वे उनसे कुछ पाने की आशा नहीं रखते, लेकिन फिर भी हर परिस्थिति में उनका भला चाहते हैं।
निस्वार्थ प्रेम का सार है – केवल देना, चाहे बदले में कुछ मिले या न मिले।
पवित्र और निस्वार्थ प्रेम में फर्क
पवित्र प्रेम = प्रेम की शुद्धता (कोई स्वार्थ या अशुद्ध भावना न हो)।
निस्वार्थ प्रेम = प्रेम में अपेक्षा का अभाव (सिर्फ़ देना, बिना बदले की सोच)।
दोनों मिलकर प्रेम को उसकी सबसे ऊँची अवस्था तक पहुँचा देते हैं। यही प्रेम गीता में “भक्ति” और संतों की वाणी में “परम प्रेम” कहलाता है।
5. प्रेम गीता के अनुसार
जब प्रेम को गीता की दृष्टि से देखते हैं तो यह सिर्फ़ रोमांटिक भावना या आकर्षण नहीं रह जाता, बल्कि यह आत्मा और परमात्मा का मिलन बन जाता है। श्रीकृष्ण ने गीता में प्रेम को भक्ति, समर्पण और निस्वार्थ कर्म के रूप में परिभाषित किया है।
गीता में प्रेम = भक्ति
भगवद्गीता कहती है कि जब इंसान पूरे मन से परमात्मा को याद करता है, उस पर विश्वास करता है और उसका नाम लेता है, वही असली प्रेम है।
कृष्ण कहते हैं – “जो भक्त मुझे प्रेम और श्रद्धा से याद करता है, मैं सदा उसका स्मरण करता हूँ।”
यहाँ प्रेम का अर्थ है — आत्मा का अपने स्रोत की ओर लौटना।
अर्जुन और कृष्ण का संवाद
गीता में अर्जुन का प्रेम कृष्ण के प्रति केवल दोस्ती नहीं था, बल्कि पूर्ण समर्पण था। युद्धभूमि पर अर्जुन भ्रमित था, लेकिन कृष्ण से प्रेम और विश्वास ने ही उसे मार्ग दिखाया।
यह हमें सिखाता है कि असली प्रेम वह है जहाँ हम अपने अहंकार और भय को छोड़कर पूरी तरह से समर्पित हो जाएँ।
गीता का संदेश
प्रेम का मतलब है कर्तव्य (Duty) को निभाना बिना स्वार्थ के।
प्रेम का मतलब है समर्पण (Surrender) – “मैं” से “तुम” और “तुम” से “वह” की यात्रा।
प्रेम का मतलब है एकता (Oneness) – आत्मा और परमात्मा का मिलन।
आधुनिक जीवन में भी गीता हमें यह सिखाती है कि प्रेम का असली रूप केवल रिश्तों तक सीमित नहीं है।
जब हम किसी भी काम को पूरे समर्पण और निष्ठा से करते हैं, जब हम दूसरों को बिना शर्त अपनाते हैं — वही प्रेम गीता के अनुसार सच्चा प्रेम है।
6. प्यार के संकेत (Love Signs)
अक्सर दिल पूछता है – “क्या मैं सच में प्यार में हूँ?” या “सामने वाला मुझे सचमुच चाहता है या नहीं?”
प्यार की यही अनिश्चितता कभी मिठास देती है तो कभी बेचैनी। लेकिन सच्चाई यह है कि प्रेम अपने आप को छिपाता नहीं है। जब प्यार होता है तो उसके संकेत स्पष्ट दिखाई देते हैं।
- सामान्य संकेत – जब दिल धड़कने लगे
- सामने वाले का ख्याल हर वक्त आना।
- उसकी खुशी और दुख से खुद को जुड़ा हुआ पाना।
- छोटी-सी मुलाक़ात में भी अपार आनंद मिलना।
- दूरी होने पर बेचैनी और पास होने पर शांति।
- उसके लिए त्याग करने की सहज इच्छा होना।
लड़की के प्यार के संकेत
- वह अक्सर बिना कारण बात करने का बहाना ढूँढ़ती है।
- आपकी छोटी-सी बात या gesture को भी याद रखती है।
- आपकी उपस्थिति में उसकी आँखों की चमक और मुस्कान बदल जाती है।
- आपकी ज़रूरतों का ख्याल रखने लगती है।
- आपको motivate करने और सपोर्ट करने में हमेशा आगे रहती है।
लड़के के प्यार के संकेत
- वह आपको protect करने और हर समस्या में साथ देने लगता है।
- आपकी छोटी-सी खुशी को भी बड़ा बना देता है।
- आपकी बातों को ध्यान से सुनता और महत्व देता है।
- आपके लिए समय निकालना उसकी प्राथमिकता बन जाती है।
- आपकी भावनाओं को ठेस न पहुँचे, इसका ध्यान रखता है।
प्यार होने के बाद कैसा फील होता है?
- दिल में अजीब-सी हलचल, मानो ज़िंदगी को नया अर्थ मिल गया हो।
- साधारण चीज़ें भी खूबसूरत लगने लगती हैं।
- मन में सुरक्षा और belongingness का एहसास।
- साथ ही डर भी होता है – “कहीं इसे खो न दूँ”।
- कुल मिलाकर ऐसा लगता है कि पूरी दुनिया बदल गई है।
यही संकेत बताते हैं कि प्रेम केवल मन की कल्पना नहीं, बल्कि एक सजीव अनुभव है।
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7. सच्चे प्यार और टाइमपास में फर्क
आज के समय में सबसे बड़ा सवाल यही है — “कैसे पता करें कि यह सच्चा प्यार है या सिर्फ़ टाइमपास?”
क्योंकि बहुत बार आकर्षण, आदत या अकेलेपन से पैदा हुआ जुड़ाव भी हमें प्रेम जैसा लगता है। लेकिन जब गहराई से देखते हैं, तो सच्चे प्यार और टाइमपास में स्पष्ट अंतर दिखता है।
सच्चे प्यार की पहचान
- इसमें गहराई और स्थिरता होती है, यह समय और परिस्थितियों से नहीं टूटता।
- सच्चा प्रेम केवल लेने के लिए नहीं, बल्कि देने और निभाने के लिए होता है।
- इसमें सम्मान, विश्वास और अपनापन शामिल होता है।
- सामने वाले की कमियों को स्वीकार करना, न कि उसे बदलने की कोशिश करना।
- एक-दूसरे के विकास और भलाई की सच्ची चाहत।
टाइमपास रिश्ते की पहचान
- यह अक्सर शुरुआत में बहुत जोश और आकर्षण से भरा होता है, लेकिन जल्दी ठंडा पड़ जाता है।
- इसमें स्वार्थ और फायदे की भावना छिपी रहती है।
- जब परिस्थिति कठिन होती है तो यह रिश्ता टूट जाता है।
- इसमें गहरी समझ और स्थायी जुड़ाव की कमी होती है।
- अक्सर इसमें भावनाओं से ज़्यादा दिखावा और मज़ाक होता है।
Practical Test – कैसे पहचानें?
1. खुद से पूछें – “क्या मैं इस व्यक्ति को वैसे ही चाहता हूँ जैसे वह है, या मैं चाहता हूँ कि वह मेरे मुताबिक़ बदल जाए?”
2. देखें – “क्या मैं इसके बिना अधूरा हूँ, या इसके साथ मिलकर पूरा महसूस करता हूँ?”
3. सबसे महत्वपूर्ण – “क्या इस रिश्ते में विश्वास और शांति है, या सिर्फ़ तनाव और शक?”
अगर उत्तर में शांति, विश्वास और स्थिरता है तो वह सच्चा प्रेम है।
और अगर उत्तर में बेचैनी, स्वार्थ और असुरक्षा है तो समझ लीजिए कि वह केवल टाइमपास है।
8. प्यार होने के बाद क्या होता है?
प्यार होना सिर्फ़ एक भावनात्मक अनुभव नहीं है, बल्कि यह पूरी ज़िंदगी को बदलने वाला क्षण होता है। जब किसी के प्रति प्रेम जागता है तो मन, शरीर और आत्मा – तीनों में गहरे बदलाव आते हैं।
भावनात्मक बदलाव
- दिल में एक अनोखी खुशी और उत्साह भर जाता है।
- अकेलापन गायब हो जाता है और भीतर से एक सुरक्षा महसूस होती है।
- भावनाएँ संवेदनशील हो जाती हैं – छोटी-सी बात पर हँसी भी आती है और आँसू भी।
- कभी-कभी अनजाना डर भी रहता है कि कहीं यह रिश्ता टूट न जाए।
मानसिक बदलाव
- सोचने का तरीका बदल जाता है। अब “मैं” से ज़्यादा “हम” अहम हो जाते हैं।
- ज़िम्मेदारियाँ बढ़ जाती हैं, क्योंकि प्यार के साथ देखभाल और अपनापन भी जुड़ा होता है।
- ध्यान भटकने लगता है – पढ़ाई, काम या बाकी चीज़ों पर कम और उस इंसान पर ज़्यादा।
- लेकिन साथ ही एक नया प्रेरणा-स्त्रोत भी मिलता है, जो जीवन को आगे बढ़ाने की ताक़त देता है।
शारीरिक बदलाव
- वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि प्रेम होने पर हार्मोनल बदलाव से ऊर्जा और उत्साह बढ़ता है।
- नींद में भी उसका ख्याल आता है, सपनों में मुलाक़ातें होती हैं।
- शरीर से एक अलग ही चमक और आकर्षण झलकने लगता है।
आध्यात्मिक बदलाव
- प्रेम हमें “स्वार्थ” से निकालकर “समर्पण” की ओर ले जाता है।
- हम अपने अहंकार को छोड़कर किसी और के लिए जीना सीखते हैं।
- कई बार प्रेम ध्यान और भक्ति का रूप ले लेता है, जहाँ हम ईश्वर को भी उसी प्रेम में देखने लगते हैं।
कुल मिलाकर, प्यार होने के बाद ज़िंदगी सिर्फ़ वही नहीं रहती जो पहले थी।
यह हमें नया दृष्टिकोण देता है, जीने का नया कारण देता है, और कई बार आत्मा तक को छू जाता है।
9. निष्कर्ष – प्रेम का असली सार
प्रेम का विस्तार
प्रेम केवल दो व्यक्तियों के बीच का बंधन नहीं है। इसका दायरा बहुत व्यापक है। प्रेम पशु-पक्षियों से हो सकता है, फूलों और पेड़ों से हो सकता है, बहते हुए झरनों और नदियों से हो सकता है, चाँद-सूरज और तारों से भी हो सकता है।
जब हम किसी पालतू जानवर को दुलारते हैं, उसकी आँखों में झलकता अपनापन भी प्रेम ही है। जब किसी बगीचे की खुशबू हमें सुकून देती है, वह भी प्रेम ही है। प्रेम की यही खासियत है कि यह हर जीव, हर कण और पूरी सृष्टि में बसता है। इसलिए कहा गया है — प्रेम की कोई सीमा नहीं होती, यह हर जगह और हर रूप में मौजूद है।
प्रेम का सार
प्रेम की परिभाषा अलग-अलग हो सकती है, लेकिन इसका मूल भाव है – समर्पण और स्वीकार्यता।
यह क्यों होता है – क्योंकि यह हमारी जैविक ज़रूरत, मानसिक सहारा और आध्यात्मिक यात्रा का हिस्सा है।
पवित्र और निस्वार्थ प्रेम – यही वह अवस्था है जहाँ प्रेम सबसे ऊँचाई पर पहुँचता है।
गीता के अनुसार प्रेम – सच्चा प्रेम केवल रिश्तों तक सीमित नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा का मिलन है।
प्यार के संकेत – जब किसी के ख्याल में दिल बसने लगे और उसकी खुशी आपकी खुशी बन जाए।
सच्चा बनाम टाइमपास – सच्चे प्रेम में स्थिरता, सम्मान और विश्वास है; टाइमपास में स्वार्थ और दिखावा।
प्यार होने के बाद – जीवन नया अर्थ पाता है, जिम्मेदारी और अपनापन बढ़ता है, और आत्मा भी परिपक्व होती है।
अंतिम विचार
पूरे लेख को पढ़ने के बाद हम समझ सकते हैं कि प्रेम कोई साधारण भावना नहीं है, बल्कि यह जीवन की आत्मा है। यह इंसान को बदल देता है, जोड़ देता है और कई बार टूटकर भी उसे गहराई से नया बना देता है।
प्रेम को शब्दों में बाँधना कठिन है क्योंकि यह अनुभव करने की चीज़ है।
यह हमें “मैं” से “हम” और “हम” से “सर्वव्यापक” की ओर ले जाता है।
चाहे वह किसी इंसान के लिए हो, प्रकृति के लिए हो या ईश्वर के लिए — प्रेम ही वह शक्ति है जो हमें जोड़ती है और सम्पूर्णता का एहसास कराती है।
इसलिए कहा गया है –
“प्रेम ही ईश्वर है और ईश्वर ही प्रेम है।”
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