
Compassion of a Sufi Saint: When Even Wounds Became a Home of Mercy
1. भूमिका – जंगल की झोपड़ी और करुणा की महक

कभी-कभी जीवन हमें ऐसे प्रसंगों से गुज़ार देता है, जो हमारी सोच की पूरी दिशा बदल देते हैं। जंगल की एक साधारण सी झोपड़ी में बैठे सूफी संत और वहां से गुजरते हुए एक वैद्य की मुलाकात ऐसी ही एक घटना है। बाहर से यह केवल एक छोटी-सी घटना लग सकती है, लेकिन भीतर से यह करुणा, दया और आत्मिक दृष्टि की गहराई खोल देती है।
इस कहानी का मर्म यह है कि करुणा केवल इंसानों तक सीमित नहीं, बल्कि जीव-जंतु, कीड़े-मकोड़े और हर उस प्राणी तक फैल सकती है जिसे जीवन मिला है। यही सूफी संत का नजरिया था।
2. वैद्य की मुलाकात – रास्ता पूछते हुए
एक दिन एक वैद्य (हकीम) जंगल से गुजर रहा था। उसे रास्ते की पहचान में थोड़ी कठिनाई हुई और अचानक उसे एक झोपड़ी दिखाई दी। झोपड़ी के भीतर बैठे थे एक सूफी संत, जिनका चेहरा शांत, आंखें गहरी और जीवन पूरी तरह सरल था।
वैद्य ने आदरपूर्वक उनसे रास्ता पूछा। संत ने मुस्कुराते हुए उसे मार्ग दिखा दिया। यह घटना तो सामान्य थी, लेकिन असली चमत्कार उसके बाद हुआ, जब वैद्य की नजर संत की टांग पर पड़ी।
3. संत का घाव – करुणा की परीक्षा
संत की टांग पर एक बड़ा घाव था। उसमें कीड़े पड़ चुके थे। वैद्य, जो अपने ज्ञान और औषधियों से कई लोगों का उपचार कर चुका था, यह देखकर दुखी हो गया। उसके भीतर से करुणा उमड़ी और उसने संत से कहा –
“बाबा, मुझे अनुमति दीजिए। मैं आपके घाव की सफाई कर दूं। इन कीड़ों को निकालकर मरहम-पट्टी कर दूंगा। आपका दर्द भी कम होगा और यह घाव जल्दी भर जाएगा।”
लेकिन संत ने तुरंत मना कर दिया।
4. संत का उत्तर – करुणा की पराकाष्ठा
वैद्य ने हैरानी से पूछा, “आप क्यों नहीं चाहते कि घाव ठीक हो? यह तो आपके शरीर को नुकसान पहुंचाएगा।”
संत ने शांत स्वर में उत्तर दिया –
“भाई, यह घाव अब इन कीड़ों का घर बन चुका है। अगर मैं तुम्हें इन्हें निकालने दूं, तो ये बेचारे मर जाएंगे। मैंने अपने शरीर को ईश्वर की अमानत माना है। अगर इस घाव ने कुछ प्राणियों को शरण दी है, तो मैं इनसे उनका घर कैसे छीन लूं? मेरे लिए यह दुख नहीं, बल्कि दया का अवसर है।”
5. वैद्य का अनुभव – करुणा का अनोखा स्वाद
वैद्य लाख समझाता रहा। उसने तर्क दिया कि अगर घाव बढ़ा तो बीमारी और कष्ट बढ़ेगा। लेकिन संत अपने निर्णय पर अडिग रहे।
आखिरकार वैद्य निरुत्तर होकर अपने रास्ते निकल पड़ा, लेकिन जाते-जाते उसके मन में गहरा परिवर्तन हो गया। उसने सोचा –
“जो व्यक्ति अपने शरीर के कीड़ों तक के प्रति इतनी करुणा रख सकता है, वह अवश्य ही किसी और ही धरातल पर जी रहा है। यह करुणा साधारण इंसान के बस की बात नहीं।”
उसकी आत्मा इस अनुभव से भीतर तक हिल गई।

Compassion of a Sufi Saint: When Even Wounds Became a Home of Mercy
6. करुणा का असली अर्थ – सूफी दृष्टिकोण

सूफी संतों की शिक्षा हमेशा प्रेम और करुणा के इर्द-गिर्द घूमती है। उनके अनुसार –
करुणा केवल इंसानों के लिए नहीं है।
हर जीव, चाहे वह छोटा कीड़ा ही क्यों न हो, ईश्वर का अंश है।
स्वार्थरहित दृष्टि ही करुणा है।
जब तक हमारी दया में अपना फायदा या नुकसान छिपा है, वह अधूरी है।
संत का शरीर भी साधन है।
उन्होंने अपने शरीर को व्यक्तिगत संपत्ति नहीं, बल्कि ईश्वर की धरोहर माना। यही कारण था कि वे उसे भी दान की तरह देखते थे।
7. आधुनिक जीवन के लिए सीख
आज के युग में जब इंसान अपने छोटे-से लाभ के लिए दूसरों का नुकसान कर देता है, यह कथा हमें बहुत कुछ सिखाती है।
अगर हम केवल इंसानों के लिए ही नहीं, बल्कि प्रकृति और छोटे जीव-जंतुओं के लिए भी करुणा रखें, तो हमारी चेतना स्वतः ही ऊँची हो जाएगी।
हर बार जब हम स्वार्थ से ऊपर उठकर सोचते हैं, तो हमारे भीतर सूफी संत का ही अंश जागता है।
करुणा केवल उपदेश नहीं है, यह जीने का तरीका है।
8. निष्कर्ष – जब करुणा जीवन का मर्म बन जाए
सूफी संत और वैद्य की यह घटना हमें दिखाती है कि सच्ची करुणा कैसी होती है।
दूसरों को बचाने के लिए अपने कष्ट को सह लेना ही सच्ची साधना है।
यह केवल सूफियों का मार्ग नहीं, बल्कि हर उस इंसान का मार्ग है जो अपने भीतर इंसानियत को जीवित रखना चाहता है।
जब हमारा हृदय इतना विशाल हो जाए कि उसमें एक छोटे-से कीड़े की भी जगह बन सके, तभी हम सच में ईश्वर के करीब पहुंच सकते हैं।
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