कृष्ण और समय यात्रा का रहस्य: जब योग और विज्ञान मिलकर मोड़ते हैं काल की धारा

श्रीकृष्ण कुरुक्षेत्र में सूर्य को रोकते हुए, समय की धारा पर नियंत्रण का प्रतीक चित्र, श्री कृष्ण भगवान का सुंदर फोटो
The Mystery of Krishna and Time Travel: When Yoga and Science Bend the Flow of Time


भाग 1 – भूमिका: जब कृष्ण ने समय को अपनी उंगलियों पर नचाया

कुरुक्षेत्र का युद्ध अपने चरम पर था। चौदहवें दिन की सांझ ढल रही थी। जयद्रथ नाम का योद्धा, जो अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की हत्या में शामिल था, युद्धभूमि के उस पार खड़ा था। सूर्य अस्त होने वाला था और शर्त थी — यदि सूर्यास्त से पहले अर्जुन जयद्रथ को नहीं मार पाया, तो वह स्वयं अग्नि में प्रवेश कर प्राण त्याग देगा।

चारों तरफ तनाव का वातावरण, योद्धाओं की सांसें तेज, और समय जैसे रेत की तरह मुट्ठी से फिसल रहा था। तभी कृष्ण ने अर्जुन से कहा —

अर्जुन, देखो… सूर्य अब डूबेगा नहीं।

इतिहासकार कहेंगे यह एक रणनीति थी, भक्त कहेंगे यह चमत्कार था, और साधक कहेंगे — यह समय को मोड़ने की क्षमता थी।

उस क्षण ऐसा लगा जैसे समय रुक गया हो। युद्धभूमि की हवा स्थिर, योद्धाओं के मन स्थिर, और सूर्य जैसे आदेश का पालन कर रहा हो।

यही वह जगह है जहाँ सवाल उठता है —

क्या कृष्ण सच में समय को बदल सकते थे?

क्या यह कोई योगिक सिद्धि थी?

या फिर उन्होंने केवल हमारी समय की धारणा को बदल दिया?

महाभारत में कृष्ण की कई घटनाएँ इस रहस्य की ओर इशारा करती हैं — कि वे केवल स्थान और परिस्थिति नहीं, बल्कि काल के भी स्वामी थे।

और यहीं से शुरू होती है हमारी यात्रा, श्रीकृष्ण और समय यात्रा के रहस्य को समझने की।

भाग 2 – समय यात्रा की अवधारणा: प्राचीन और आधुनिक नजर से

जब हम "समय यात्रा" (Time Travel) सुनते हैं तो अक्सर फिल्मों के दृश्य दिमाग में आते हैं — कोई मशीन में बैठकर अतीत या भविष्य में चला गया, या कोई अचानक दूसरे युग में प्रकट हो गया। लेकिन भारतीय दृष्टिकोण में समय यात्रा केवल मशीन या तकनीक का खेल नहीं, बल्कि चेतना की गहराई का अनुभव है।

प्राचीन दृष्टिकोण

वेद, पुराण और महाभारत जैसे ग्रंथों में समय को केवल रेखीय (Linear) नहीं माना गया। समय को चक्र (Cycle) के रूप में देखा गया — युगों का आना-जाना, सृष्टि और प्रलय का दोहराव।

भागवत पुराण में कथा है कि एक साधु को विष्णु के लोक में कुछ पल का अनुभव हुआ, लेकिन जब वह धरती पर लौटा तो हजारों वर्ष बीत चुके थे। यह समय के सापेक्ष अनुभव का सबसे सुंदर उदाहरण है।

योगवासिष्ठ में "काल" को चेतना का खेल बताया गया है — जब मन स्थिर होता है तो समय रुक जाता है, और जब मन अशांत होता है तो समय भागता हुआ लगता है।

आधुनिक दृष्टिकोण

विज्ञान की दुनिया में, समय यात्रा की संभावना पर गंभीर शोध हुआ है।

आइंस्टीन का सापेक्षता सिद्धांत (Theory of Relativity) कहता है कि समय स्थिर नहीं है, बल्कि गति और गुरुत्वाकर्षण के अनुसार बदलता है। तेज गति से चलते हुए समय धीमा हो जाता है — इसे Time Dilation कहते हैं।

वर्महोल (Wormhole) का विचार यह है कि अंतरिक्ष में दो बिंदुओं को शॉर्टकट की तरह जोड़कर, हम समय में भी छलांग लगा सकते हैं।

कुछ वैज्ञानिक "ब्लॉक यूनिवर्स थ्योरी" पर विश्वास करते हैं, जिसमें अतीत, वर्तमान और भविष्य — तीनों एक साथ अस्तित्व में हैं, बस हमारी चेतना एक समय-रेखा पर आगे बढ़ती है।

आध्यात्मिक और वैज्ञानिक संगम

प्राचीन ऋषियों के अनुभव और आधुनिक भौतिकी की खोजों में एक अद्भुत मेल है। जहाँ विज्ञान कहता है कि समय बदल सकता है, वहीं योग कहता है कि साधना के जरिए हम समय की धारणा को बदल सकते हैं।

कृष्ण का "कालोऽस्मि" (मैं समय हूँ) कथन इसीलिए रहस्यमय है — क्या वे केवल दार्शनिक रूप से यह कह रहे थे, या सच में समय पर उनका अधिकार था?

अब अगला कदम है, उन घटनाओं को देखना जहाँ महाभारत में समय के इस रहस्य की झलक मिलती है।

भाग 3 – महाभारत की वे घटनाएँ जो ‘टाइम लूप’ का संकेत देती हैं

महाभारत केवल युद्ध की कथा नहीं, बल्कि समय और चेतना के गहरे रहस्यों का ग्रंथ है। जब आप इसकी घटनाओं को गहराई से देखते हैं, तो कई जगह ऐसा लगता है मानो समय अपनी सामान्य धारा में नहीं बह रहा — कभी रुक जाता है, कभी तेज हो जाता है, और कभी भविष्य पहले ही वर्तमान में उतर आता है।

1. कुरुक्षेत्र में सूर्य रोकना – जयद्रथ वध

चौदहवें दिन की कथा हम भूमिका में छू चुके हैं। सूर्यास्त होने ही वाला था, लेकिन अर्जुन को जयद्रथ का वध करना था। तभी कृष्ण ने अपनी योगमाया से आकाश में अंधकार छा दिया, मानो सूर्य ढल गया हो।

जयद्रथ युद्धभूमि में आया, अर्जुन ने उसे मार गिराया।

फिर कृष्ण ने अंधकार हटाया, सूर्य पुनः चमक उठा।

यह घटना केवल छल थी या सच में समय की धारा में हस्तक्षेप?

2. गीता उपदेश – जब समय थम गया

महाभारत के अनुसार, गीता का उपदेश युद्ध के आरंभ में हुआ और यह संवाद केवल कुछ ही मिनटों का माना जाता है। लेकिन यदि आप 700 श्लोकों को समझने, अनुभव करने और उस स्थिति में जीने का प्रयास करेंगे, तो लगेगा जैसे यह घंटों नहीं, बल्कि कालातीत अवस्था में हुआ हो।

संभव है, युद्धभूमि पर खड़े सभी योद्धाओं के लिए समय रुका हुआ था, जबकि कृष्ण और अर्जुन एक अलग समय-आयाम में थे।

3. भविष्यवाणी और पूर्वज्ञान

कृष्ण ने कई बार भविष्य को ठीक-ठीक बताया:

शिशुपाल के 100 अपराध पूरे होने पर मृत्यु।

युद्ध में भीम का दुर्योधन की जंघा पर वार करना।

अश्वत्थामा द्वारा उत्तरा के गर्भ पर वार, और उसके बाद गर्भ में ही बालक को जीवित करना।

ये घटनाएँ केवल दूरदृष्टि नहीं, बल्कि समय की पूरी पटकथा का पहले से ज्ञान होने का संकेत हैं।

4. समय का मोड़ – परीक्षित का जन्म और मृत्यु

अश्वत्थामा ने उत्तरा के गर्भ में ब्रह्मास्त्र छोड़ा, समय मानो गर्भ के भीतर भी पहुँच गया। कृष्ण ने वहाँ हस्तक्षेप करके अजन्मे बालक को बचाया — यह घटना दर्शाती है कि वे केवल बाहरी समय ही नहीं, बल्कि जीवन के आंतरिक समय में भी प्रवेश कर सकते थे।

इन घटनाओं को अगर आप ध्यान से देखें, तो एक ही निष्कर्ष निकलता है — कृष्ण के लिए समय कोई कठोर रेखा नहीं, बल्कि मोम की तरह लचीला था, जिसे वे अपनी आवश्यकता अनुसार मोड़ सकते थे।

अब सवाल है — क्या उन्होंने सच में समय को बदला, या केवल हमारी समय-धारणा को? यही हम अगले भाग में देखेंगे।

भाग 4 – क्या कृष्ण ने सच में समय बदला या चेतना का स्तर?

कृष्ण के समय-रहस्य को समझने में सबसे बड़ा प्रश्न यही है — क्या वे सचमुच भौतिक समय (Physical Time) में बदलाव करते थे, या फिर केवल लोगों की चेतना में समय की धारणा (Perception of Time) बदल देते थे?

1. भौतिक समय में बदलाव की संभावना

अगर हम यह मान लें कि कृष्ण के पास योगिक सिद्धियाँ थीं, तो वे अणिमा, महिमा, प्राप्ति जैसी शक्तियों के जरिए समय-स्थान (Time-Space) के ताने-बाने में हस्तक्षेप कर सकते थे।

अणिमा सिद्धि से वे किसी भी सूक्ष्म स्तर पर जाकर ब्रह्मांड के मूल कणों से खेल सकते थे, जिससे समय की गति बदलना संभव हो सकता है।

प्राप्ति सिद्धि से वे किसी भी स्थान और समय में तुरंत पहुँच सकते थे — यह आधुनिक विज्ञान में Teleportation या Time Jump जैसा लगता है।

2. चेतना में समय बदलना

योगिक दृष्टि से समय एक मानसिक अनुभव है।

जब हम ध्यान में होते हैं, तो कई बार घंटों बीत जाते हैं लेकिन लगता है जैसे कुछ ही पल हुए हों।

इसके विपरीत, पीड़ा या चिंता में कुछ मिनट भी भारी लगते हैं।

कृष्ण का “कालोऽस्मि” (मैं ही समय हूँ) कथन इस बात की ओर इशारा करता है कि वे मनुष्य की चेतना को उस स्तर पर पहुँचा सकते थे, जहाँ समय की पकड़ ढीली पड़ जाती है।

गीता का उपदेश इसका सबसे स्पष्ट उदाहरण है — युद्धभूमि पर हजारों सैनिक खड़े हैं, लेकिन उनके लिए वह समय जैसे थम गया हो।

3. समय: बाहर और भीतर का अंतर

शास्त्र कहते हैं — "बाह्य समय" (Outer Time) और "आंतरिक समय" (Inner Time) दो अलग चीजें हैं।

बाह्य समय सूरज-चाँद और घड़ी की सुइयों से मापा जाता है।

आंतरिक समय हमारी चेतना की गति से।

कृष्ण के पास यह क्षमता थी कि वे बाह्य और आंतरिक समय को एक साथ प्रभावित कर सकते थे।

4. किसका नियंत्रण अधिक महत्वपूर्ण है?

भौतिक समय पर नियंत्रण करना अद्भुत है, लेकिन चेतना में समय को बदलना कहीं अधिक शक्तिशाली है — क्योंकि यही साधक को कालातीत बना देता है। कृष्ण इस सिद्धांत के प्रतीक हैं।

संभव है, उनके कुछ "चमत्कार" वास्तव में लोगों के आंतरिक समय अनुभव को बदलने से हुए हों, जिसे बाहरी दुनिया ने समय यात्रा समझा।

अगले भाग में हम देखेंगे कि समय और योगिक शक्तियों का रिश्ता क्या है, और यह रहस्य कैसे विज्ञान और अध्यात्म दोनों में फिट बैठता है।

महाभारत युद्धभूमि में कृष्ण अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए, समय के स्थिर पल का दृश्य, श्री कृष्ण भगवान का सुंदर फोटो
The Mystery of Krishna and Time Travel: When Yoga and Science Bend the Flow of Time

भाग 5 – समय और योगिक शक्तियाँ – सिद्धियों से जुड़ा विज्ञान

भारतीय योग परंपरा में “सिद्धियाँ” केवल चमत्कार दिखाने के लिए नहीं थीं, बल्कि चेतना और ब्रह्मांड के नियमों को गहराई से समझने के परिणामस्वरूप स्वाभाविक रूप से प्राप्त होने वाली क्षमताएँ थीं। समय पर नियंत्रण, या कम से कम समय की धारणा को बदलने की शक्ति, इन्हीं सिद्धियों में से एक है।

1. सिद्धियाँ और समय का रिश्ता

पतंजलि योगसूत्र में आठ प्रमुख सिद्धियों का उल्लेख है — अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व। इनमें से कुछ का समय पर सीधा प्रभाव पड़ता है:

लघिमाशरीर को इतना हल्का कर लेना कि गुरुत्वाकर्षण और समय की सीमाएँ बाधा न बनें।

प्राप्तिकिसी भी स्थान और समय में तुरंत पहुँचने की क्षमता।

ईशित्व और वशित्व – प्रकृति के तत्वों और नियमों पर नियंत्रण, जिसमें समय भी शामिल है।

2. ध्यान और समय की गति

गहन ध्यान (Deep Meditation) में मस्तिष्क की तरंगें धीमी हो जाती हैं।

जब थीटा वेव्स और डेल्टा वेव्स सक्रिय होती हैं, तो व्यक्ति समय के प्रवाह को धीमा या तेज महसूस करता है।

आधुनिक विज्ञान इसे “Altered State of Consciousness” कहता है, लेकिन योगी इसे समाधि की अवस्था मानते हैं।

3. महाभारत में सिद्धियों का प्रयोग

कृष्ण स्वयं योगेश्वर कहलाए, और उन्होंने अपनी सिद्धियों का प्रयोग केवल धर्म की रक्षा के लिए किया।

जयद्रथ वध के समय “सूर्यास्त” का खेल संभवतः ईशित्व सिद्धि का उदाहरण था।

गर्भ में परीक्षित को बचाना — यह सूक्ष्म स्तर पर समय-ऊर्जा में हस्तक्षेप था।

भविष्यवाणी और रणनीति — कालज्ञान (Time Awareness) की उच्चतम अवस्था।

4. विज्ञान का दृष्टिकोण

आधुनिक भौतिकी मानती है कि समय और स्थान (Time-Space) एक ही ताने-बाने के हिस्से हैं। यदि कोई इनकी संरचना को मोड़ सके, तो समय में आगे-पीछे जाना संभव है।

योगिक सिद्धियाँ इस “Space-Time Manipulation” का जैविक और चेतन-आधारित तरीका हो सकती हैं — बिना किसी मशीन के।

5. साधकों के लिए संदेश

कृष्ण का जीवन हमें यह सिखाता है कि सिद्धियाँ लक्ष्य नहीं, बल्कि मार्ग में आने वाले फूल हैं। असली लक्ष्य है चेतना को इतना ऊँचा उठाना कि समय भी आपके साथ तालमेल बैठा ले।

अब अगले भाग में हम देखेंगे कि आधुनिक विज्ञान और कृष्ण के समय दृष्टिकोण में क्या समानताएँ हैं, और कैसे दोनों एक ही रहस्य की ओर इशारा करते हैं।

भाग 6 – आधुनिक विज्ञान बनाम कृष्ण का समय दृष्टिकोण

जब हम आधुनिक विज्ञान के समय सिद्धांतों और कृष्ण के विचारों को साथ रखकर देखते हैं, तो दोनों के बीच आश्चर्यजनक समानता दिखती है — फर्क सिर्फ भाषा और दृष्टिकोण का है। विज्ञान गणनाओं और सूत्रों में बात करता है, जबकि कृष्ण अनुभव और चेतना की भाषा में।

1. आइंस्टीन और ‘कालोऽस्मि’

आइंस्टीन के Theory of Relativity के अनुसार समय स्थिर नहीं है। यह गति और गुरुत्वाकर्षण के अनुसार धीमा या तेज हो सकता है। कृष्ण गीता में कहते हैं —

 “कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्” — मैं ही समय हूँ, जो लोकों का संहार करता है।

इस कथन में समय को एक जीवित, सक्रिय शक्ति के रूप में देखा गया है — बिल्कुल वैसे ही जैसे विज्ञान समय को Space-Time का गतिशील पहलू मानता है।

2. ब्लॉक यूनिवर्स बनाम सर्वज्ञता

विज्ञान में Block Universe Theory कहती है कि अतीत, वर्तमान और भविष्य — तीनों एक साथ अस्तित्व में हैं।

कृष्ण का पूर्वज्ञान (शिशुपाल के अपराध, युद्ध का परिणाम, कलियुग का आगमन) इसी सोच से मेल खाता है — वे उस समय-रेखा को पहले से “देख” सकते थे, जिस पर बाकी लोग अभी चल रहे थे।

3. वर्महोल और योगिक मार्ग

वर्महोल (Wormhole) का विचार यह है कि अंतरिक्ष में दो बिंदुओं को जोड़कर, हम दूरी और समय दोनों को छोटा कर सकते हैं।

योगिक दृष्टिकोण में, गहन ध्यान साधक की चेतना को एक बिंदु (Bindu) में केंद्रित करता है, जहाँ से वह किसी भी समय या स्थान तक “जंप” कर सकता है। यह बिना तकनीक के वर्महोल जैसा अनुभव है।

4. विज्ञान की सीमाएँ, योग की संभावनाएँ

विज्ञान समय यात्रा की संभावना को मानता है, लेकिन उसके लिए विशाल ऊर्जा, ब्लैक होल या वर्महोल जैसे साधनों की जरूरत बताता है।

योग कहता है — चेतना ही सबसे बड़ी ऊर्जा है, और उसका सही प्रयोग समय और स्थान को मोड़ सकता है।

कृष्ण इसका जीवंत उदाहरण हैं — उन्होंने किसी मशीन के बिना, केवल अपनी योगिक शक्ति और जागरूकता से समय को अपनी इच्छानुसार मोड़ा।

5. समान धरातल

दोनों दृष्टिकोण मानते हैं कि समय पूर्ण रूप से कठोर नहीं है। इसे बदला, मोड़ा और अलग तरह से अनुभव किया जा सकता है।

फर्क बस इतना है कि विज्ञान इसे तकनीक से करना चाहता है, और योग इसे चेतना से करता है।

अब अगले भाग में हम देखेंगे कि साधना के माध्यम से एक साधक समय पर किस हद तक नियंत्रण पा सकता है, और यह अनुभव व्यावहारिक रूप से कैसे संभव है।

भाग 7 – साधना में समय पर नियंत्रण की संभावना

समय पर पूर्ण नियंत्रण सुनने में किसी विज्ञान-फंतासी (Science Fiction) जैसा लगता है, लेकिन भारतीय योग परंपरा में यह एक सिद्ध अनुभव माना गया है। यहाँ "नियंत्रण" का अर्थ यह नहीं कि आप कैलेंडर की तारीखें बदल देंगे या घड़ी की सुइयाँ उल्टा घुमा देंगे — बल्कि यह कि आप अपनी चेतना के स्तर पर समय की धारा को धीमा, तेज या स्थिर महसूस कर पाएँ।

1. साधना और समय का अनुभव

योग और ध्यान में समय का अनुभव बदलना स्वाभाविक है।

गहन ध्यान में बैठा साधक कई घंटे बाद उठता है, लेकिन उसे लगता है कुछ ही पल बीते हैं।

विपरीत स्थिति में, साधना के शुरुआती दौर में कुछ मिनट भी भारी लगते हैं।

इससे स्पष्ट है कि समय का असली अनुभव हमारी चेतना की गति पर निर्भर है।

2. अभ्यास से समय की धारणा में बदलाव

कुछ विशेष साधनाएँ समय को “खींचने” या “संपीड़ित” करने में मदद करती हैं:

त्राटक – किसी एक बिंदु पर दृष्टि टिकाकर मन को स्थिर करना।

प्राणायाम – श्वास की गति को धीमा करने से मन की गति धीमी होती है, और समय का अनुभव बदलता है।

मौन साधना – बाहरी शब्द और विक्षेप हटाने से चेतना गहराई में उतरती है, जहाँ समय का अस्तित्व धुंधला हो जाता है।

3. कालातीत अवस्था का रहस्य

जब साधक समाधि में प्रवेश करता है, तो वह “कालातीत” (Beyond Time) हो जाता है।

इस अवस्था में अतीत और भविष्य दोनों वर्तमान में समा जाते हैं।

यह वही स्थिति है जिसे महाभारत में गीता के उपदेश के समय अर्जुन ने अनुभव किया होगा — युद्धभूमि पर होते हुए भी समय जैसे थम गया।

4. सीमाएँ और जिम्मेदारी

समय पर नियंत्रण का अर्थ यह भी है कि साधक अपने जीवन में धैर्य और गति को संतुलित कर पाता है।

वह जानता है कब समय को धीमा कर वर्तमान का आनंद लेना है, और कब अपनी ऊर्जा को भविष्य की ओर “तेज़” करना है।

कृष्ण के जीवन में यह संतुलन स्पष्ट दिखता है — जब जरूरी हुआ, उन्होंने समय को मोड़ा, और जब आवश्यक न था, उसे अपनी धारा में बहने दिया।

5. आज के साधक के लिए संदेश

भले ही हम कृष्ण की तरह समय को भौतिक रूप से मोड़ न पाएं, लेकिन चेतना के स्तर पर समय का अनुभव बदलना हर साधक के लिए संभव है। यही अभ्यास हमें जीवन की भागदौड़ में भी शांत और सजग बनाए रखता है।

अब अंतिम भाग में हम इस पूरी चर्चा का सार देखेंगे और समझेंगे कि कृष्ण के लिए समय यात्रा केवल शक्ति नहीं, बल्कि चेतना का खेल थी।

भाग 8 – निष्कर्ष: कृष्ण का समय-रहस्य शक्ति से ज्यादा चेतना का खेल

श्रीकृष्ण के जीवन में समय यात्रा या समय पर नियंत्रण की कहानियाँ केवल चमत्कार की कहानियाँ नहीं हैं — वे गहरी चेतना विज्ञान की झलक हैं।

उन्होंने हमें यह दिखाया कि समय, जिसे हम अटल और अपरिवर्तनीय मानते हैं, वास्तव में लचीला है और हमारी धारणा के अनुसार बदल सकता है।

1. शक्ति से ज्यादा सजगता

कृष्ण के लिए समय पर नियंत्रण किसी “सुपरपावर” का प्रदर्शन नहीं था।

जयद्रथ वध, परीक्षित को बचाना, या गीता का उपदेश — ये सभी घटनाएँ उनके द्वारा धर्म और संतुलन बनाए रखने के लिए समय का इस्तेमाल करने के उदाहरण हैं।

उनकी सजगता और परिस्थितियों की गहरी समझ ने उन्हें यह क्षमता दी कि वे समय की धारा को मोड़ सकें।

2. विज्ञान और योग का संगम

जहाँ आधुनिक विज्ञान कहता है कि समय-स्थान (Space-Time) को मोड़ा जा सकता है, वहीं योग कहता है कि चेतना ही समय को मोड़ सकती है।

कृष्ण दोनों दृष्टिकोणों के सेतु हैं — उनके कार्य हमें बताते हैं कि यह रहस्य सिर्फ प्रयोगशालाओं में नहीं, बल्कि ध्यान और साधना में भी खोजा जा सकता है।

3. हमारे लिए सीख

वर्तमान पर पकड़ – जब हम सच में वर्तमान में जीते हैं, समय धीमा और गहरा लगता है।

आंतरिक संतुलन – समय का असली नियंत्रण हमारे भीतर की स्थिरता से आता है, न कि बाहर की घटनाओं से।

धर्म के लिए शक्ति का प्रयोग – चाहे समय हो या कोई अन्य क्षमता, उसका प्रयोग केवल व्यापक भलाई के लिए होना चाहिए।

4. अंतिम विचार

कृष्ण का “समय रहस्य” हमें यह याद दिलाता है कि वास्तविक समय यात्रा बाहरी दुनिया में नहीं, बल्कि हमारी चेतना में होती है।

जब चेतना अतीत और भविष्य दोनों को वर्तमान में समेट लेती है, तो साधक कालातीत हो जाता है।

शायद इसी लिए कृष्ण ने खुद को “काल” कहा — क्योंकि वे केवल समय में जीते नहीं थे, वे स्वयं समय थे।

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